Sunderlal Bahuguna Ji Ki Jiwani – सुंदरलाल बहुगुणा जी की जीवनी

सखियों श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी हमारे देश की एक बहुत एक प्रसिद्ध गढ़वाली पर्यावरणविद् और चिपको आंदोलन के नेता थे। स्वागत है आपका हमारे इस पोस्ट में Shri Sunderlal Bahuguna ji ki jiwani ( सुंदरलाल बहुगुणा जी की जीवनी )

श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी ने अपना पूरा जीवन हिमालय और जंगलों के संरक्षण के लिए संघर्ष को समर्पित किया।

Shri Sunderlal Bahuguna ji ki jiwani ( सुंदरलाल बहुगुणा जी की जीवनी ) हम सब के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

Shri Sunderlal Bahuguna जी 1980 के दशक से लेकर 2004 की शुरुआत तक टिहरी बांध विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया।

Sunderlal Bahuguna ji ki jiwani – प्रारंभिक जीवन

श्री सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड के टिहरी के पास मरोदा गाँव में हुआ था।

उनका मानना था की उनके पूर्वज, जिनका उपनाम बंद्योपाध्याय था, 800 साल पहले बंगाल से टिहरी आ गए थे।

Shri Sunderlal Bahuguna जी ने श्री देव सुमन के मार्गदर्शन में तेरह साल की उम्र में सामाजिक गतिविधियों की शुरुआत की थी।

श्री देव सुमन एक गांधीवादी नेता थे और उस समय कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए थे।

प्रारंभ में, बहुगुणा जी ने अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई लड़ी और बाद में 1965 से 1970 तक अपने शराब विरोधी अभियान में पहाड़ी महिलाओं को संगठित करना शुरू किया।

उन्होंने ने 1947 से पहले अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में भी भाग लिया। उन्होंने अपने जीवन में गांधीवादी सिद्धांतों को अपनाया।

Shri Sunderlal Bahuguna जी की पत्नी का नाम विमला देवी था और उन्होंने अपनी पत्नी से इस शर्त के साथ विवाह किया कि वे ग्रामीण लोगों के बीच रहेंगे और गांव में आश्रम स्थापित करेंगे।

महात्मा गांधी जी से प्रेरित होकर, उन्होंने हिमालय के जंगलों और पहाड़ियों का पैदल दौरा किया और लगभा 4,700 किलोमीटर से अधिक की पैदल दूरी तय की।

उन्होंने हिमालय के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर मेगा विकास परियोजनाओं द्वारा किए गए नुकसान की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित किया।

Sunderlal Bahuguna ji ki jiwani – चिपको आंदोलन में योगदान

चिपको आंदोलन 1973 में उत्तर प्रदेश में शुरू किया गया था। इस आंदोलन का उद्देश्य वन ठेकेदारों द्वारा पेड़ों और जंगलों को काटने से बचाने के लिए किया गया था।

हिंदी में, “चिपको” का शाब्दिक अर्थ है “चिपकना” , और इस आंदोलन का यही ख़ास तरीका था।

लोग उन पेड़ों को पकड़ के चिपक के खड़े हो जाते थे जीने ठेकेदार काटने जा रहे होते थे और इस तरत से वो उन पेड़ों को काटने से रोकते थे।

आपो शायद पता न हो पर , चिपको आंदोलन ने बाद में कर्नाटक में अप्पिको आंदोलन को प्रेरित किया।

सुंदरलाल बहुगुणा के उल्लेखनीय योगदानों में से एक है , चिपको आंदोलन का नारा “पारिस्थितिकी स्थायी अर्थव्यवस्था है ( Ecology is permanent economy )” ।

श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी ने 1981 से 1983 तक लगभग 4900 किलोमीटर के ट्रांस-हिमालय मार्च के माध्यम से आंदोलन को प्रमुखता से सामने लाने में मदद की, और गाँव से गाँव की यात्रा करते हुए, चिपको आंदोलन के लिए समर्थन जुटाया।

उनकी तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के साथ एक मीटिंग हुई थी और उस बैठक के बाद इंदिरा गांधी जी ने 1980 में हरे पेड़ों की कटाई पर 15 साल के प्रतिबंध लगा दिया था

Sunderlal Bahuguna ji ki jiwani – टेहरी बाँध के विरुद्ध आंदोलन

टेहरी बाँध के विरुद्ध आंदोलन में श्री सुंदर लाल बहुगुणा जी का एक बहुत बड़ा योगदान रहा है। वो एक गांधीवादी थे और आंदोलन में सत्याग्रह के तरीकों का उपयोग किया।

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उन्होंने भागीरथी के तट पे भूख हड़ताल किया। 1995 में ऐसे ही एक आंदोलन में उन्होंने 45 दिनों का भूख हड़ताल किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पी वी नरसिम्हा राव एक आश्वाशन पे अपना भूख हड़ताल तोडा।

श्री पी वी नरसिम्हा राव से इस बाँध की वजह से पर्यावरण पे पड़ने वाले असर को परखने के लिए एक कमिटी बनाने का आश्वाशन दिया।

उसी तरह श्री एच डी देवे गौड़ा के प्रधान मंत्री काल में उन्होंने फिर एक बार 74 दिनों का भूख हड़ताल किया , और श्री एच डी देवे गौड़ा के आश्वाशन के बाद ही यह भूख हड़ताल थोड़ा।

हालाँकि टेहरी बाँध का काम 2001 में फिर से शुरू हुआ और 2004 के आस पास बांध में पानी भरना शुरू हुआ।

Sunderlal Bahuguna ko diye gaye awards – सुंदरलाल बहुगुणा जी को दिए गए अवार्ड्स

अपने धेय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ऐसी थी कि 1981 में उन्होंने पद्मश्री लेने से इनकार कर दिया क्योंकि हिमालय में पेड़ों की कटाई बड़े पैमाने पर हो रही थी।

उनको दिए गए सारे पुरुस्कारों ( अवार्ड्स ) की लिस्ट :

  • 1981 पदमश्री ( पर उन्होंने इसे लेने से मन कर दिया था )
  • 1987: Right Livelihood Award ( चिपको आंदोलन )
  • 1986: जमना लाल बजाज अवार्ड
  • 1989 Honorary Degree of Doctor of Social Sciences ( IIT Roorkee द्वारा दिया गया )
  • 2009: पद्म विभूषण

सारांश

Shri Sunderlal Bahuguna जी भारत के शुरुआती पर्यावरणविदों में से एक थे। वो एक महान व्यक्तितव थे।

Shri Sunderlal Bahuguna जी की , कोविड -19 के कारण , 21 मई 2021 को , मृत्यु हो गई। Shri Sunderlal Bahuguna जी 94 वर्ष के थे और उनका अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में इलाज चल रहा था।

एक ‘सौम्य योद्धा’ के रूप में संदर्भित, बहुगुणा ने बांधों के निर्माण और पेड़ों की कटाई का विरोध करने के लिए कई आंदोलन किये ( जिसमे भूख हड़ताल भी था ) .

और Sunderlal Bahuguna ji ki jiwani ( सुंदरलाल बहुगुणा जी की जीवनी ) हमें सदैव प्रेरित करती रहेगी।


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